Ve Din Aur Ye Din | Ramdarash Mishra
01 October 2025

Ve Din Aur Ye Din | Ramdarash Mishra

Pratidin Ek Kavita

About

वे दिन और ये दिन | रामदरश मिश्र


तब वे दिन आते थे

उड़ते हुए

इत्र-भीगे अज्ञात प्रेम-पत्र की तरह

और महमहाते हुए निकल जाते थे

उनकी महमहाहट भी

मेरे लिए एक उपलब्धि थी।

अब ये दिन आते हैं सरकते हुए

सामने जमकर बैठ जाते हैं।

परीक्षा के प्रश्न-पत्र की तरह

आँखों को अपने में उलझाकर आह!

हटते ही नहीं

ये दिन

जिनका परिणाम पता नहीं कब निकलेगा।