Ek Fantasy | Dharamvir Bharti
04 September 2025

Ek Fantasy | Dharamvir Bharti

Pratidin Ek Kavita

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एक फ़ैंटसी | धर्मवीर भारती


साँझ के झुटपुटे में,


जब कि दूर आस्माँ पर एक धुआँ-सा छा रहा था,

तारे अकुला रहे थे, चाँद थर्रा रहा था


चोट इतनी गहरी थी,

कि बादलों के सीने से ख़ून उबला आ रहा था,


पास की पगडंडी से

एक राही कंधों पर


अपनी ही लाश लादे धीमे-धीमे जा रहा था

गीतों के कंकाल झूठे प्यार के मसान में,


धधकती चिताओं के पास बैठे गा रहे थे,

अपने सूखे हाथों से,


अपनी पसलियों को तोड़-तोड़

चूर-चूर कर चिताओं पर बिखरा रहे थे!


एक जलते मुर्दे ने

अपनी जलती उँगलियों से


ऊँची-नीची बालू पर इक खींच दी लकीर!

और हँस कर बोला :


“यह है प्यार की तस्वीर!