Bahut Dinon Se | Muktibodh
11 September 2025

Bahut Dinon Se | Muktibodh

Pratidin Ek Kavita

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बहुत दिनों से | गजानन माधव मुक्तिबोध


मैं बहुत दिनों से बहुत दिनों से

बहुत-बहुत सी बातें तुमसे चाह रहा था कहना

और कि साथ यों साथ-साथ

फिर बहना बहना बहना

मेघों की आवाज़ों से

कुहरे की भाषाओं से

रंगों के उद्भासों से ज्यों नभ का कोना-कोना

है बोल रहा धरती से

जी खोल रहा धरती से

त्यों चाह रहा कहना

उपमा संकेतों से

रूपक से, मौन प्रतीकों से


मैं बहुत दिनों से बहुत-बहुत-सी बातें

तुमसे चाह रहा था कहना!

जैसे मैदानों को आसमान,

कुहरे की मेघों की भाषा त्याग

बिचारा आसमान कुछ

रूप बदलकर रंग बदलकर कहे।